शरीर स्वर्णयुक्त पाषाण है, मूल्यवान है ।
तपा लिया तो शुद्ध स्वर्ण निखर आता है, बहुमूल्य की प्राप्ति हो जाती है ।
निमित्त ना मिलने/पुरुषार्थ ना करने पर प्रथम अवस्था में ही पड़ा रहता है ।
चिंतन
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4 Responses
उक्त कथन सत्य है कि शरीर स्वर्ण युक्त पाषाण है जो मूल्यवान है। इसलिए सोने को तपाते है शुद्व स्वर्ण मे निखार आ जाता है,और बहुमूल्य हो जाता है।अतः शरीर को निमित्त न मिले लेकिन पुरुषार्थ तो करना आवश्यक है अन्यथा प़थम अवस्था में रह पाओगे।
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उक्त कथन सत्य है कि शरीर स्वर्ण युक्त पाषाण है जो मूल्यवान है। इसलिए सोने को तपाते है शुद्व स्वर्ण मे निखार आ जाता है,और बहुमूल्य हो जाता है।अतः शरीर को निमित्त न मिले लेकिन पुरुषार्थ तो करना आवश्यक है अन्यथा प़थम अवस्था में रह पाओगे।
“प्रथम अवस्था” ka is post mein kya meaning hai?
स्वर्ण युक्त पाषाण ।
Okay.