शुद्धि
शुद्धि अनेक प्रकार की, सिर्फ़ भाव-शुद्धि से काम सिद्ध नहीं होगा। निमित्त, द्रव्य, कर्म, नोकर्म शुद्धि भी चाहिये। लेकिन ये सब शुद्ध हों और भाव-शुद्धि न हो, तो भी बात नहीं बनेगी। हालांकि भाव-शुद्धि के लिये द्रव्यादि भी शुद्ध होने चाहिये।
ऐसे ही भाव-लिंग बिना द्रव्य-लिंग के नहीं/ क्रिया धर्म नहीं पर क्रिया के बिना भी धर्म नहीं।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
4 Responses
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने शुद्धि को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन का कल्याण करने के लिए भाव शुद्धि होना परम आवश्यक है।
‘ऐसे ही भाव-लिंग बिना द्रव्य-लिंग के नहीं’; yahan par kiski baat ho rahi hai, please ?
मुनिराज।
Okay.