तीर्थंकर भी हजारों बार शुभोपयोग में रहते/आते हैं,
क्योंकि शुद्धोपयोग में तो अंतर्मुहूर्त से ज्यादा रह नहीं सकते हैं ।
चिंतन
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शुभोपयोग- -दया दान पूजा व़़त शील आदि रुप शुभ राग और चित्त प़साद रुप परिणाम होना शुभोपयोग है।
शुद्वोपयोग- -रागदि विकल्पों से रहित आत्मा की निश्चय दशा ही शुद्वोपयोग है,निश्चय रत्नत्रय से युक्त वीतरागी श्रमण को शुद्वोपयोग कहा गया है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि तीर्थंकर भी हजारों बार शुभोपयोग रहते/ आते रहते हैं, क्योंकि शुद्वोपयोग में तो अंतमुर्हूर्त से ज्यादा रह नहीं सकते हैं।
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शुभोपयोग- -दया दान पूजा व़़त शील आदि रुप शुभ राग और चित्त प़साद रुप परिणाम होना शुभोपयोग है।
शुद्वोपयोग- -रागदि विकल्पों से रहित आत्मा की निश्चय दशा ही शुद्वोपयोग है,निश्चय रत्नत्रय से युक्त वीतरागी श्रमण को शुद्वोपयोग कहा गया है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि तीर्थंकर भी हजारों बार शुभोपयोग रहते/ आते रहते हैं, क्योंकि शुद्वोपयोग में तो अंतमुर्हूर्त से ज्यादा रह नहीं सकते हैं।