शौच – “और पाने” का भाव ना होना,
आकिंचन – “मेरा कुछ है ही नहीं” का भाव ।
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दशलक्षण पर्व में 10 धर्मों का पालन करने हेतु बताया गया है।शौच और आकिंचन का उल्लेख किया गया है।शौच धर्म का मतलब लोभ का त्याग करना है यह सब मुनि अपनी इच्छाओं को रोककर और बैराग्य रुप विचारों से युक्त होकर आचरण करते हैं, उसे ही शौच धर्म कहते हैं।आकिंचन धर्म में समस्त परिग़ह का त्याग करना है इसमें कुछ भी मेरा नहीं है,इस तरह का निर्लोभ भाव रखना ही आकिंचन धर्म है।
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दशलक्षण पर्व में 10 धर्मों का पालन करने हेतु बताया गया है।शौच और आकिंचन का उल्लेख किया गया है।शौच धर्म का मतलब लोभ का त्याग करना है यह सब मुनि अपनी इच्छाओं को रोककर और बैराग्य रुप विचारों से युक्त होकर आचरण करते हैं, उसे ही शौच धर्म कहते हैं।आकिंचन धर्म में समस्त परिग़ह का त्याग करना है इसमें कुछ भी मेरा नहीं है,इस तरह का निर्लोभ भाव रखना ही आकिंचन धर्म है।