आहार, भय, मैथुन और परिग्रह में तीन की अभिलाषा तो प्रत्यक्ष है । पर भय को इच्छा कैसे समझें ?
भय कब ?
जब किसी अभिलाषित वस्तु न मिलने,मिल जाने पर छूट जाने, और-और ना मिलने का भय ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि संज्ञा में आहार,भय,मैथुन और परिग़ह होते हैं, जबकि तीनों की अभिलाषा तो प़त्यक्ष होती है लेकिन भय की इच्छा किस प्रकार समझी जावे,यह महत्वपूर्ण है।जब किसी अभिलाषित वस्तु को न मिलने,मिल कर छूट जाने पर और और ना मिलने का भय रहता है। अपनी इच्छाओं को समाप्त करना चाहिए ताकि जीवन में भय नहीं रहे।
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उपरोक्त कथन सत्य है कि संज्ञा में आहार,भय,मैथुन और परिग़ह होते हैं, जबकि तीनों की अभिलाषा तो प़त्यक्ष होती है लेकिन भय की इच्छा किस प्रकार समझी जावे,यह महत्वपूर्ण है।जब किसी अभिलाषित वस्तु को न मिलने,मिल कर छूट जाने पर और और ना मिलने का भय रहता है। अपनी इच्छाओं को समाप्त करना चाहिए ताकि जीवन में भय नहीं रहे।