संज्ञा

आहार संज्ञा → 6ठे गुणस्थान तक लेकिन इस गुणस्थान में हर समय आहार की इच्छा नहीं।
भय संज्ञा → 8वें गुणस्थान तक पर 7वें गुणस्थान में ध्यान करते समय भी भय नहीं। उदय की अपेक्षा 8वाँ गुणस्थान कहा पर उदीरणा नहीं।
मैथुन संज्ञा → 9वें गुणस्थान तक, पर इच्छा नहीं क्योंकि इच्छा प्रमाद के साथ ही होती है।
7 से 9वें गुणस्थान में उपचार से कहा है।
परिग्रह संज्ञा → 10वें गुणस्थान तक पर लोभ के कारण कहा है।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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8 Responses

  1. मुनि महाराज जी ने संज्ञा का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! संज्ञा का गुणस्थान बताया गया है वह पूर्ण सत्य है!

  2. 1) ‘भय संज्ञा’ → ‘उदय की अपेक्षा 8वाँ गुणस्थान कहा पर उदीरणा नहीं।’ Can meaning of this line be explained, please ?

    2) ‘मैथुन संज्ञा’ → ‘9 वें गुणस्थान तक, पर इच्छा नहीं क्योंकि इच्छा प्रमाद के साथ ही होती है।’ To phir 7 से 9वें गुणस्थान में उपचार से bhi kyun कहा ?

    3) ‘परिग्रह संज्ञा’ → ’10वें गुणस्थान तक पर लोभ के कारण कहा’; yahan par ‘पर’ kyun use kiya ?

    1. उदय में प्रभाव हल्का होता है, उदीरणा के साथ तीव्रता।
      जैसे 7वें गुणस्थान तक आयुकर्म उदीरणा सहित, आगे सिर्फ उदय।

  3. 1) ‘मैथुन संज्ञा’ → ‘9 वें गुणस्थान तक, पर इच्छा नहीं क्योंकि इच्छा प्रमाद के साथ ही होती है।’ To phir 7 से 9वें गुणस्थान में उपचार से bhi kyun कहा ?
    2) ‘परिग्रह संज्ञा’ → ’10वें गुणस्थान तक पर लोभ के कारण कहा’; yahan par ‘पर’ kyun use kiya, please ?

    1. 1) मैथुन संज्ञा का उदय 9वें तक पर योग नहीं।
      2) बाह्य परिग्रह तो 6ठे में ही समाप्त। आगे अंतरंग भी नहीं। चूंकि लोभ 10वें तक रहता है इसलिए उसके सदभाव में परिग्रह कहा है।

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