आचार्य कुंदकुंद ने कहा है – वहाँ न जायें, जहाँ संयम की वृद्धि न हो अथवा संयम का पालन न हो सके ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
Share this on...
One Response
संयम जैन धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है इसमें व़त व समिति का पालन करना, कार्य की अशुभ प़वृति का त्याग करना तथा इन्द़ियो को वश में रखना आवश्यक है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है वहां न जाये, जहां संयम की वृद्धि न हो अथवा संयम का पालन न हो सकें। जीवन में संयम रखना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
One Response
संयम जैन धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है इसमें व़त व समिति का पालन करना, कार्य की अशुभ प़वृति का त्याग करना तथा इन्द़ियो को वश में रखना आवश्यक है। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है वहां न जाये, जहां संयम की वृद्धि न हो अथवा संयम का पालन न हो सकें। जीवन में संयम रखना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।