जो दौड़-दौड़ कर भी नहीं मिलता, वह संसार है;
जो बिना दौड़े मिलता है, वह भगवान है ।
(सुरेश)
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संसार आवागमन को कहते हैं,जिसका अर्थ परिभ्रमण या परिवर्तन होता है, कर्म के फलस्वरूप आत्मा भवान्तर की प्राप्ति होना ही है। उपरोक्त कथन सत्य है कि जो दौड़ दौड़ कर नहीं मिलता है, वही संसार है। जो बिना दौड़े मिलता है,वह भगवान है।
इसका तात्पर्य है कि भगवान् बनने के बाद उनको संसार में भटकना नहीं पड़ता है।
अतः जीवन में आत्मा के हित का प्रयास करना आवश्यक है ताकि भगवान् बनकर संसार में भटकना नहीं पड़े ।
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संसार आवागमन को कहते हैं,जिसका अर्थ परिभ्रमण या परिवर्तन होता है, कर्म के फलस्वरूप आत्मा भवान्तर की प्राप्ति होना ही है। उपरोक्त कथन सत्य है कि जो दौड़ दौड़ कर नहीं मिलता है, वही संसार है। जो बिना दौड़े मिलता है,वह भगवान है।
इसका तात्पर्य है कि भगवान् बनने के बाद उनको संसार में भटकना नहीं पड़ता है।
अतः जीवन में आत्मा के हित का प्रयास करना आवश्यक है ताकि भगवान् बनकर संसार में भटकना नहीं पड़े ।