सक्रियता और पुद्गल
ज्यादा इंद्रियों तथा मन वालों में पुद्गल ज्यादा होते हैं तथा इनकी सक्रियता भी ज्यादा होती है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
तत्त्वार्थ सूत्र में भी शायद इसी कारण से पाँचों शरीरों में क्रमश: अधिक अधिक प्रदेश बताये हैं – औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्मण में।
इसी क्रम से इनमें सक्रियता भी अधिक-अधिक है।
चिंतन
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पुदग्ल का मतलब जो पूरण आदि गलन स्वभाव वाला है, अथवा रुप,रस, गंध और स्पर्श चारों गुण होते हैं।यह दो प़कार के होते हैं स्कंध और परमाणु। अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि ज्यादा इन्द़ियो तथा मन वालों में पुदग्ल ज्यादा होते हैं एवं उनकी सक्रियता भी ज्यादा होती है।