सत्संग

शरीर मिट्टी का ही तो बना है ।
यह मिट्टी जमाने की हवा लगकर सूख जाती है ।
तब सत्संग के छीटें मार लें, वरना यह पात्र बनने के लायक नहीं रहेगी और हम किसी की तथा अपनी प्यास भी नहीं बुझा पायेंगे ।

चिंतन

Share this on...

3 Responses

  1. संस्कृत मे सत्संग का अर्थ सत् = सत्य, संग= संगति अर्थात सत्य की संगति और भारतीय दर्शन में इसके अर्थ हैं – १ – परम सत्य की संगति, २ – गुरु की संगति, या ३- व्यक्तियों की ऐसी सभा की संगति जो सत्य सुनती है, सत्य की बात करती है और सत्य को आत्मसात् करती है और सत्य को सुनने, उसकी बाते करने तथा उसे आत्मसात करने के लिये शरीर ही निमित्त हो सकता है. शरीर मिट्टी का बना है और मिट्टी से जल पात्र के साथ साथ आत्मा की बाती को प्रज्ज्वलित करने के लिये दीपक का आकार भी प्रदान किया जाता है पर सत्संग रूपी पानी के छींटो की आवश्यक्ता इसमे भी होगी नही तो चाहे कंठ हो चाहे आत्मा, अतृप्ती और तृष्णा की अनुभूति बनी रहेगी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives

November 15, 2011

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930