जिस पदार्थ की जो उपयोगिता है उसे उसी रूप जानना: यह सम्यग्ज्ञान की “अर्थ-क्रिया” है; पदार्थ की प्रयोजनीयता है, जैसे कि घड़े की पानी जमा और ठंडा करना।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड–गाथा – 218)
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4 Responses
मुनि महाराज जी का सम्यग्ज्ञान का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! सम्यग्ज्ञान ही सम्यग्दर्शन ओर सम्यक्चारित्र का अनुभव किया जा सकता है! अतः जीवन में भेद विज्ञान को आत्मा में उतारना पडेगा ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
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मुनि महाराज जी का सम्यग्ज्ञान का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! सम्यग्ज्ञान ही सम्यग्दर्शन ओर सम्यक्चारित्र का अनुभव किया जा सकता है! अतः जीवन में भेद विज्ञान को आत्मा में उतारना पडेगा ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
‘उपयोगिता’ aur ‘प्रयोजनीयता’ ek hi hai, right ?
हाँ, यहाँ पर दोनों का एक ही अर्थ है।
Okay.