सम्यग्दर्शन—“अ” ऐसा ही बनता है।
कैसे जाना ?
शिक्षक ने बताया; ज्ञान/प्राम्भिक दशा।
बाद में “अ” ऐसा ही होता है— सम्यग्ज्ञान/अंतिम दशा ।
मन में संदेह आये तब गुरु/जिनवाणी की शरण में जाना ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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6 Responses
सम्यग्दर्शन का तात्पर्य सच्चे देव शास्त्र गुरु पर श्रद्वान करना होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि इसकी परिभाषा अ शब्द से इसलिए कि गईं है कि पढ़ाने के लिए शिक्षक अ से शुरुआत करते हैं,यह ज्ञान की प़ाम्भिक दशा होती है। अतः जब धर्म में प़वेश करते हैं,तब शुरुआत सम्यग्दर्शन का जानना आवश्यक है ताकि उसके बाद सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र का ज्ञान होता है। किसी प्रकार का सन्देह हो तो जिनवाणी और गुरु की शरण में जाना पड़ता है।
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सम्यग्दर्शन का तात्पर्य सच्चे देव शास्त्र गुरु पर श्रद्वान करना होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि इसकी परिभाषा अ शब्द से इसलिए कि गईं है कि पढ़ाने के लिए शिक्षक अ से शुरुआत करते हैं,यह ज्ञान की प़ाम्भिक दशा होती है। अतः जब धर्म में प़वेश करते हैं,तब शुरुआत सम्यग्दर्शन का जानना आवश्यक है ताकि उसके बाद सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र का ज्ञान होता है। किसी प्रकार का सन्देह हो तो जिनवाणी और गुरु की शरण में जाना पड़ता है।
Is post ke context me,”अ” ka kya significance hai?
“अ” प्रतिनिधित्व कर रहा है किसी भी अक्षर को।
अक्षर ऐसे ही बनता है, ऐसे विश्वास को स.दर्शन कहते हैं।
Aur samyaggyan me, yahi “अ” confirm ho jaata hai?
सही।
Okay.