क्षयोपशम तथा द्वितीयोपशम सम्यग्दर्शन, अंतरमुहूर्त के बाद दुबारा हो सकता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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सम्यग्दर्शन का तात्पर्य सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति श्रद्वान होता है, अथवा जिनेन्द्र भगवान के द्वारा सात तत्वों पर यथार्थ श्रद्वान करना होता है, अथवा आत्मरुचि होना, अथवा स्व पर भेद विज्ञान होना। इसके दो भेद होते हैं, निश्चय और व्यवहार। मिथ्यात कर्म के कारण उपशम, क्षय या क्षयोपशम की अपेक्षा सम्यग्दर्शन के भी तीन होते हैं। उपशम का मतलब आत्मा में कर्म की निज शक्ति के कारण प़कट न होता है,इसी प्रकार कर्म के उदय से उपशम से अन्तरमुहूर्त के लिए जीव के परिणाम निर्मल हो जाते हैं ।
अतः उपरोक्त कथनों से मुनि महाराज ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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सम्यग्दर्शन का तात्पर्य सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति श्रद्वान होता है, अथवा जिनेन्द्र भगवान के द्वारा सात तत्वों पर यथार्थ श्रद्वान करना होता है, अथवा आत्मरुचि होना, अथवा स्व पर भेद विज्ञान होना। इसके दो भेद होते हैं, निश्चय और व्यवहार। मिथ्यात कर्म के कारण उपशम, क्षय या क्षयोपशम की अपेक्षा सम्यग्दर्शन के भी तीन होते हैं। उपशम का मतलब आत्मा में कर्म की निज शक्ति के कारण प़कट न होता है,इसी प्रकार कर्म के उदय से उपशम से अन्तरमुहूर्त के लिए जीव के परिणाम निर्मल हो जाते हैं ।
अतः उपरोक्त कथनों से मुनि महाराज ने जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।