तत्वार्थसूत्र में सराग-संयम 6, 7 गुणस्थान में कहा, इसीलिये संयमा-संयम (5वें गुणस्थान) को अलग रखा है ।
ब्र. सविता दीदी
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सराग-यानी व्यवहार चरित्र कहते हैं जिसमें व़़त आदि का पालन करना होता है अथवा मन, वचन, काय से समस्त पाप क़ियाओ का त्याग करना होता हैं।
संयम- – व़त व समिति का पालन करना मन,वचन,काय की अशुभ प्रवृत्ति का त्याग करना तथा इन्द्रियों को वश में रखना होता है। अतः यह कथन सत्य है कि तत्त्वार्थसूत्र में सराग-संयम 6,7 गुणस्थान में कहा, इसलिए संयमा-संयम को 5 वें गुणस्थान को अलग रखा है।
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सराग-यानी व्यवहार चरित्र कहते हैं जिसमें व़़त आदि का पालन करना होता है अथवा मन, वचन, काय से समस्त पाप क़ियाओ का त्याग करना होता हैं।
संयम- – व़त व समिति का पालन करना मन,वचन,काय की अशुभ प्रवृत्ति का त्याग करना तथा इन्द्रियों को वश में रखना होता है। अतः यह कथन सत्य है कि तत्त्वार्थसूत्र में सराग-संयम 6,7 गुणस्थान में कहा, इसलिए संयमा-संयम को 5 वें गुणस्थान को अलग रखा है।