सिद्ध भगवान में परिणमन द्रव्य (जीव) की अपेक्षा अगुरुलघु गुण से होता है, पर हम उसे समझ नहीं सकते । ज्ञान में, शीशे की तरह समझ सकते हैं, जैसे शीशे में पर्याय के परिवर्तन दिखायी देते हैं, ऐसे ही भगवान के ज्ञान में परिणमन होना समझना चाहिए ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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