सोलहकारण भावना

सोलहकारण भावना की हर भावना अपने आप में परिपूर्ण है।
विनय-संपन्नता भी स्वतंत्र कारण है (तीर्थंकर बंध प्रकृति के लिये)।

श्री धवला जी – मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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One Response

  1. भावना की जैन धर्म में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। जिसके जो भाव होते हैं, वैसा उसका परिणाम मिलता है। उपरोक्त कथन सत्य है कि सोलहकारण भावना की हर भावना अपने आप में परिपूर्ण होती है अतः उपरोक्त भावनाओं पर श्रद्वान करने पर तीर्थंकर बंध हो सकता है।

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