“अगरबत्ती” अपने सहारे जलती है, इसलिये महकती है, फूँक मारने से भी बुझती नहीं है (और ज्यादा जलने लगती है),
जबकि “दिया”, घी/बाती/मिट्टी के सहारे, फूंक मारो तो अंधकार ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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जीवन में हर प्राणी को स्वावलम्बी होना चाहिए ताकि अपना कल्याण कर सकता हैं।
अतः सभी को अगरबत्ती की तरह होना चाहिए ताकि जीवन में महकती या खुशबू देती रहे।स्वावलम्बन में किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं होती है।
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जीवन में हर प्राणी को स्वावलम्बी होना चाहिए ताकि अपना कल्याण कर सकता हैं।
अतः सभी को अगरबत्ती की तरह होना चाहिए ताकि जीवन में महकती या खुशबू देती रहे।स्वावलम्बन में किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं होती है।