अंध-विश्वास

अंध-विश्वास से शुरुवात घातक होती है।
विश्वास करने से पहले विचार/ ज्ञान/ विवेक लगायें।
अंत में तो विश्वास को अंधा होना ही पड़ता है यानि अन्य की तरफ से अंधे, तभी पूर्ण समर्पण संभव है।
यह अंध-विश्वास का सकारात्मक पहलू है।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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4 Responses

  1. अंध विश्वास यानी बिना सोचे विश्वास करना है। उपरोक्त कथन सत्य है कि अंध विश्वास से शुरुआत घातक होती है। विश्वास करने के पहले विचार, ज्ञान और विवेक का उपयोग करना आवश्यक होता है। अतः अंध विश्वास से अंत में यदि सच्चा विश्वास आ जाता है तो यह सकारात्मक पहलू होता है। अतः जीवन में विश्वास करके ही आगे बढना चाहिए ताकि घातक न हो सके।

    1. खूब जांच/ परख कर विश्वास करने के बाद इधर-उधर झांकते रहने से मन इधर-उधर भटकेगा, इससे बचने के लिए अन्य सबकी ओर से आँखें मूंदनी होंगी।

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