अदर्शन-परिषह

दर्शन-मोहनी के उदय से, अदर्शन-परिषह होता है, मिथ्यात्व से नहीं।
शास्त्रों में – पढ़े के अनिर्णय से क्योंकि अनुभव/बुद्धि से परे है – आत्मा पकड़ में नहीं/सिद्ध का रूप नहीं, कहते हैं रूप पर श्रद्धा करो, इस पर जय, पूर्ण विश्वास/समर्पण से ही अपनी जय/पूर्णता होगी।

मुनि श्री सुधासागर जी

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7 Responses

  1. उपरोक्त कथन सत्य है कि दर्शन मोहिनी के उदय से ,अदर्शन होता है,मिथ्यात्व से नहीं। अतः जीवन में दोनों परिग़ह का त्याग करना आवश्यक है ताकि उचित दर्शन जो मोक्ष मार्ग दिखावे,मोक्ष मार्ग में संयम और उत्तम क्षमादि रुप होता है। अतः जीवन का कल्याण करने के लिए अर्हन्त भगवान् एवं गुरु के दर्शन करना चाहिए।

  2. “आत्मा पकड़ में नहीं/सिद्ध का रूप नहीं” ka meaning clarify karenge, please ?

    1. आत्मा/ सिद्ध को visualise कर नहीं सकते फिर भी श्रद्धा बनाये रखनी होगी। यही अदर्शन परीषह जय है।

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