वीतराग-धर्म अनेकांत मय के साथ साथ एकांतमय भी है,
जैसे…
सम्यग्दर्शन से ही मोक्ष मिलता है, देखने का काम आँख ही करती है ।
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अनेकान्त—एक ही वस्तु में परस्पर विरोधी अनेक धर्मो की प़तीत को कहते हैं।
जैसे एक व्यक्ती पिता, पुत्र, भाई आदि अनेक रुपो में दिखाई देता है, इसी तरह प़त्येक वस्तु के अनेक धर्म हैं।अतः वीतराग-धर्म अनेकान्त मय के साथ एकांतमय भी हैं।सम्यग्दर्शन से ही मोक्ष मिलता है जैसे देखने का काम आँख ही करती है।
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अनेकान्त—एक ही वस्तु में परस्पर विरोधी अनेक धर्मो की प़तीत को कहते हैं।
जैसे एक व्यक्ती पिता, पुत्र, भाई आदि अनेक रुपो में दिखाई देता है, इसी तरह प़त्येक वस्तु के अनेक धर्म हैं।अतः वीतराग-धर्म अनेकान्त मय के साथ एकांतमय भी हैं।सम्यग्दर्शन से ही मोक्ष मिलता है जैसे देखने का काम आँख ही करती है।