अभव्य – सिद्ध

जिनके अभव्यपने की सिद्धि हो चुकी हो जैसे ये बात सिद्ध हो चुकी है। सिद्धि एक शक्ति है, अपनी-अपनी पूर्णता को बनाये रखने के लिये।
भव्य/ अभव्यपना अपने-अपने उपादान तथा आत्मिक शक्ति से होता है।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड – गाथा : 557)

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One Response

  1. मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने अभव्य सिद्ध को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।

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