85 कर्म प्रकृतियाँ, 14 गुणस्थान में बची रहती हैं, इनमें कुछ का उदय है, कुछ का नहीं । तो बिना उदय के क्षय कैसे ?
जिनका उदय नहीं वे स्तबुकसंक्रमण करके उन प्रकृतियों में परिवर्तित हो जाती हैं, जिनका उदय है ।
बाई जी
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