अर्हम्

“अ” ⇒ अशरीरी। वर्णमाला की शुरुवात ‘अ’ से ही।
“र्” ⇒ अग्नितत्व (“र्” बोलने से अग्नि पैदा होती है। हमारे विकारों को जलाने)
“ह” ⇒ शक्ति (तभी वजन उठाते समय हू/ हा कहते हैं)। आत्मशक्ति बढ़ाने, शक्तिशाली आत्मा ही शांत/ अविकारी रहती है।
“म्” ⇒ शांति/ बिंदु के रूप में, पूरी परिधि/ शरीर नियंत्रण में।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (ति. भा. गाथा – 51)

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One Response

  1. मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने अह्रॅम् को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।

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