अवधि-ज्ञान, भव तथा लब्धि (तप से) -प्रत्यय दोनों प्रकार का ।
यह द्रष्यात्मक होता है, शब्दात्मक नहीं,
क्योंकि अवधि-ज्ञान के समय मति/श्रुत-ज्ञान पर उपयोग नहीं होता ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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4 Responses
अवधिज्ञान–जो द़व्य क्षेत्र काल आदि की सीमा में रहकर मात्र रुपी पदार्थों को प़त्यक्ष जानता है वह अवधि ज्ञान है। मति ज्ञान- -इन्द़ीय व मन की सहायता से होने वाले ज्ञान मति ज्ञान होता है। अतः उक्त कथन सत्य है कि अवधि ज्ञान,भव तथा लब्धि यानी प़त्यय दोनों प़कार का है। यह द़व्यात्मक होता है, शब्दात्मक नहीं होता हैं क्योंकि अवधि ज्ञान के समय मति और श्रुत ज्ञान का उपयोग नहीं होता हैं।
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अवधिज्ञान–जो द़व्य क्षेत्र काल आदि की सीमा में रहकर मात्र रुपी पदार्थों को प़त्यक्ष जानता है वह अवधि ज्ञान है। मति ज्ञान- -इन्द़ीय व मन की सहायता से होने वाले ज्ञान मति ज्ञान होता है। अतः उक्त कथन सत्य है कि अवधि ज्ञान,भव तथा लब्धि यानी प़त्यय दोनों प़कार का है। यह द़व्यात्मक होता है, शब्दात्मक नहीं होता हैं क्योंकि अवधि ज्ञान के समय मति और श्रुत ज्ञान का उपयोग नहीं होता हैं।
“Gun-pratyay” aur “Bhav-pratyay” “Avadhi-gyan” kya mutually exclusive hain?
Mutually exclusive ?
जिसको भव-प्रत्यय होगा, उसे तप करने की जरूरत ही नहीं,
गुण-प्रत्यय वाला, भव के साथ अवधिज्ञान लेकर आयेगा नहीं ।
Okay.