एक बार गांधी जी General Class में यात्रा कर रहे थे ।
एक गाँव वाला आया और गांधी जी को धक्का मार कर बैठ गया और गाँधी-बाबा का भजन गाने लगा ।
हम भी आत्मा आत्मा का नाम रटते रहते हैं पर अज्ञानतावश आत्मा को पहचानते नहीं ।
भक्ति अंजुरी
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जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणों में परिणमन करता है उसे ही आत्मा कहते हैं।
यह तीन प़कार की होती है
1 बहिरआत्मा
2 अंतरात्मा
3)परमात्मा।
लोग आत्मा आत्मा कहते रहते हैं लेकिन उसके स्वरूप को पहिचानते नहीं है, इसके कारण आत्मानुभूति नही होती है।अतः धर्म का आलम्बन लेकर ही आत्मा के स्वरुप की पहिचान हो सकती है,तभी आत्मानुभूति हो सकती है।
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जो यथासंभव ज्ञान, दर्शन, सुख आदि गुणों में परिणमन करता है उसे ही आत्मा कहते हैं।
यह तीन प़कार की होती है
1 बहिरआत्मा
2 अंतरात्मा
3)परमात्मा।
लोग आत्मा आत्मा कहते रहते हैं लेकिन उसके स्वरूप को पहिचानते नहीं है, इसके कारण आत्मानुभूति नही होती है।अतः धर्म का आलम्बन लेकर ही आत्मा के स्वरुप की पहिचान हो सकती है,तभी आत्मानुभूति हो सकती है।