आत्मा— जो यथासम्भव दर्शन, ज्ञान और सुख आदि में परिणमन होती रहती है। शुद्व आत्मा में विकारो का समाप्त होना होता है। दूध से घी बनता है उसको किसी अन्य द़व्य मे परिवर्तन नहीं किया जा सकता है इसलिये शुद्व आत्मानुभूति को घी जैसा कहा जा सकता है। Reply
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आत्मा— जो यथासम्भव दर्शन, ज्ञान और सुख आदि में परिणमन होती रहती है।
शुद्व आत्मा में विकारो का समाप्त होना होता है। दूध से घी बनता है उसको किसी अन्य द़व्य मे परिवर्तन नहीं किया जा सकता है इसलिये शुद्व आत्मानुभूति को घी जैसा कहा जा सकता है।