जिस प्रकार पहले कपड़े धोते हैं, नील देते हैं, फिर टिनोपाल, फिर प्रेस करते हैं, तब कपड़े चमकते हैं ।
उसी प्रकार पहले आरंभ-परिग्रह को धोओ, व्रतों का नील दो, बाद में समयसार का टिनोपाल दो, फिर ध्यान की प्रेस करो, तब आत्मा चमकेगी ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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आत्मा का तात्पर्य जो यथासंभव ज्ञान दर्शन सुख आदि गुणों से वर्तता या परिणमन करता है। आत्मा के तीन भेद है, बहिरात्मा अंतरात्मा और परमात्मा। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि पहिले आरंभ परिग़ह को धोना चाहिए,व़तों का नील लगाना, बाद में समयसार का टिनोपाल लगाना है, इसके बाद आत्मा चमगेगी। अतः जीवन में आत्महित का ध्यान रखना होगा ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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आत्मा का तात्पर्य जो यथासंभव ज्ञान दर्शन सुख आदि गुणों से वर्तता या परिणमन करता है। आत्मा के तीन भेद है, बहिरात्मा अंतरात्मा और परमात्मा। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि पहिले आरंभ परिग़ह को धोना चाहिए,व़तों का नील लगाना, बाद में समयसार का टिनोपाल लगाना है, इसके बाद आत्मा चमगेगी। अतः जीवन में आत्महित का ध्यान रखना होगा ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।