बंध / आबाधा-काल / उदय
कर्म, बंध के समय तथा आबाधा-काल में तो 100% रहता है पर उदय होते-होते 99% उदीरणा/ संक्रमित होकर समाप्त हो जाता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
(सारे कर्म जैसे बांधते हैं, यदि वैसे के वैसे उदय में आ जायें तो हमारा कचूमर बन जाये – गुरुवर मुनि श्री क्षमा सागर जी)
One Response
कर्म का तात्पर्य जीव मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करता है,वह क़िया या कर्म है।
आबाधा का मतलब कर्म के बंध होने के बाद तुरन्त उदय में नहीं आते है।
उदीरणा का मतलब जब अपक्व अर्थात पके हुए कर्मों का पकाना होता है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि कर्म बंध के समय तथा आबाधा काल में शत प्रतिशत रहते हैं, लेकिन जब उदय होते-होते 99 प़तिशत उदीरणा यानी संक्रमित होकर समाप्त हो जाते हैं।