आयुबंध

कर्मभूमिज मनुष्य व तिर्यंचों की अपेक्षा मनुष्यायु का बंध दूसरे गुणस्थान तक (क्योंकि सम्यग्दृष्टि मनुष्य/तिर्यंच देव ही बनते हैं, जबकि देव/नारकियों को अगले जन्म में देव पर्याय मिल ही नहीं सकती) और देव व नारकियों की अपेक्षा चौथे गुणस्थान तक होता है ।

करुणानुयोग दीपक – 2

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