ईश्वर ने हमारे शरीर की रचना कुछ इस प्रकार की है कि ना तो हम अपनी पीठ थपथपा सकते हैं ,
और ना ही स्वयं को लात मार सकते हैं।
इसलिए हमारे जीवन में मित्र और आलोचक होने ज़रुरी हैं ।
(शशि)
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यह कथन बिलकुल सत्य है कि, जीवन में अपने को इस प्रकार के मित्र रखने चाहिए जो आपकी बुराइयों को बता सके; उसे आलोचक कहते हैं ।आपको किसी की आलोचना नहीं करनी चाहिए, बल्कि अपनी आलोचना को किसी भी गुरु के पास जाकर अपने दोषों का निवेदन करने को, आलोचना कहते हैं।
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यह कथन बिलकुल सत्य है कि, जीवन में अपने को इस प्रकार के मित्र रखने चाहिए जो आपकी बुराइयों को बता सके; उसे आलोचक कहते हैं ।आपको किसी की आलोचना नहीं करनी चाहिए, बल्कि अपनी आलोचना को किसी भी गुरु के पास जाकर अपने दोषों का निवेदन करने को, आलोचना कहते हैं।