आश्रव पराधीन है, आपके हाथों में है, उदय स्वतंत्र है, आपके हाथ में नहीं है । आश्रव होगा तो बंध होगा ही, उदय होगा तो निर्जरा होगी । आस्रव नौवें गुणस्थान तक ही होता है (वेदनीय को छोड़कर), क्योंकि उन सब प्रकृतियों का बंध नौवें गुणस्थान तक ही होता है ।
बाई जी
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