आस्रव = आ + स्रव = सब ओर से झरना ।
मन, वचन, काय की प्रवृत्तियों से आत्मा में परिस्पंदन, इससे कर्म-वर्गणाओं के कर्म रूप परिवर्तित होने को आस्रव कहते हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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आश्रव पुण्य पाप रुप कर्मों के आवागमन को कहते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि आश्रव को विभाजित किया गया है, आ+श्रव यानी सब ओर से झरना। अतः मन वचन काय की प़वतियों से आत्मा में परिस्पदन, इससे कर्म वर्गणायें,कर्म रुप परिवर्तित होने को आश्रव कहते हैं।
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आश्रव पुण्य पाप रुप कर्मों के आवागमन को कहते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि आश्रव को विभाजित किया गया है, आ+श्रव यानी सब ओर से झरना। अतः मन वचन काय की प़वतियों से आत्मा में परिस्पदन, इससे कर्म वर्गणायें,कर्म रुप परिवर्तित होने को आश्रव कहते हैं।