आसक्ति

आसक्ति → आ + सकती (ही है)।

मुनि श्री मंगलसागर जी

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4 Responses

  1. मुनि श्री मंगलसागर महाराज जी ने आसक्ति को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए धर्म में आसक्ति बढाना परम आवश्यक है।

    1. जिसके प्रति आपकी आसक्ति है, वह आ सकती है यानी आएगी ही। जितना भी रोकना चाहो रुकेगी नहीं।

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