1. वैयावृत्ति – यदि रत्नत्रय की की साधना के भाव से दिया जाये ।
2. औषधिदान – यदि (सबसे बड़ा रोग) भूख निवारण के भाव से दिया जाय तो ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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दान, परोपकार की भावना से अपनी वस्तु का अर्पण करना कहलाता है।दान चार प़कार के होते हैं, आहार दान, औषधि, उपकरण और ज्ञान दान।
गुणीजनों के ऊपर दुख आ पड़ने पर उसके निवारणार्थ जो सेवा सुश्रुषा की जाती है वह वैयावृत्यि कहलाती है, यह आचार्य, उपाध्याय, साधुऔ आदि की विपत्ति आने पर जैसे रोगदि और व्याकुल होने पर प़ासूक आहार और औषधि आदि देना ओर उनके अनुकूल वातावरण बना देना वैयावृति कहलाती है।अतः वैयावृति में आहार दान और औषधि दान करना सबसे महत्वपूर्ण दान होता है।
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दान, परोपकार की भावना से अपनी वस्तु का अर्पण करना कहलाता है।दान चार प़कार के होते हैं, आहार दान, औषधि, उपकरण और ज्ञान दान।
गुणीजनों के ऊपर दुख आ पड़ने पर उसके निवारणार्थ जो सेवा सुश्रुषा की जाती है वह वैयावृत्यि कहलाती है, यह आचार्य, उपाध्याय, साधुऔ आदि की विपत्ति आने पर जैसे रोगदि और व्याकुल होने पर प़ासूक आहार और औषधि आदि देना ओर उनके अनुकूल वातावरण बना देना वैयावृति कहलाती है।अतः वैयावृति में आहार दान और औषधि दान करना सबसे महत्वपूर्ण दान होता है।