इच्छा
शिष्य – इच्छा क्या है ?
गुरु – जो कभी न पूरी हो, और एक-आध पूरी हो भी जाए, तो दूसरी पैदा हो जाए; प्राय: आशा के विपरीत फल आयें।
मुनि प्रमाण सागर जी
शिष्य – इच्छा क्या है ?
गुरु – जो कभी न पूरी हो, और एक-आध पूरी हो भी जाए, तो दूसरी पैदा हो जाए; प्राय: आशा के विपरीत फल आयें।
मुनि प्रमाण सागर जी
5 Responses
इच्छाओं की कोई सीमा नहीं होती है। दुनिया में हर जीव की दो प़कार की इच्छाएं होती हैं लौकिक क्षेत्र एवं पारमार्थिक।लौकिक इच्छाएं कभी पूरी नहीं हो सकती है क्योंकि एक पूरी होने पर दूसरी पैदा हो जाती है। यदि इच्छाएं करना है तो परमार्थ क्षेत्र की चुनना चाहिए ताकि मानव सेवा एवं आत्महित की चिंता करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
Can meaning of “प्राय: आशा के विपरीत फल आयें” be explained, please ?
अपने जीवन में झांक कर देखो, कितनी इच्छाओं के फल अनुकूल तथा कितनों के प्रतिकूल आये हैं !
Okay.
Very true. Jai Jinendra.