इन्द्रिय / मन
इन्द्रिय – आत्मा को इंद्र कहते हैं । आत्मा ज्ञान रूप है।
1. जो संसारी आत्मा को ज्ञान कराये, वह इंद्रिय ।
2. जो जीवों की पहचान कराये जैसे एक, दो….पंचेन्द्रिय।
तीन शब्द आते हैं –
I. इन्द्रिय
II. अनिंद्रिय – मन, जो इन्द्रियों जैसा काम/ भाव रखता है।
III.अतींद्रिय – इन्द्रियों से परे जैसे प्रत्यक्ष ज्ञान – अवधि/ मन:पर्यय/ केवल-ज्ञान ।
मन को अंत:करण भी कहते हैं क्योंकि वह अंदर रहता है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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इन्द्रिय जो सूक्ष्म आत्मा के अस्तित्व का ज्ञान कराने में सहायक होती हैं।
मन का मतलब नाना प्रकार के विकल्प जाल को कहते हैं, अथवा गुण दोष का विचार व स्मरण आदि कराने का कार्य है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि आत्मा को इन्द़ कहते हैं यानी आत्मा ज्ञान रुप है।
1 जो संसारी आत्मा का ज्ञान कराये वह इन्द़िय।
2 जो जीवों की पहिचान कराये जैसे एक इन्दिय से लेकर पंच इन्द्रिय। इसके अतिरिक्त तीन शब्दों की व्याख्या की गई है वह पूर्ण सत्य है। अ मन को अंतकरण भी कहते हैं, क्योंकि वह अंदर रहता है।