ईश्वर
कैसे मान लूँ की तू पल पल में शामिल नहीं,
कैसे मान लूँ की तू हर चीज़ में हाज़िर नहीं ।
कैसे मान लूँ की तुझे मेरी परवाह नहीं,
कैसे मान लूँ की तू दूर है पास नहीं ।
देर मैंने ही लगाई पहचानने में ,मेरे ईश्वर !
वरना तूने जो दिया उसका तो कोई हिसाब ही नहीं ।
जैसे जैसे मैं सर को झुकाता चला गया,
वैसे वैसे तू मुझे उठाता चला गया ।
(श्रीमति पारुल- बड़ौदा)
One Response
Very true. We don’t realise what God has bestowed upon us as we don’t bow before him, we stand upright in front of him in confrontation mode. Only when we switch to the submissive mode and inculcate “Vinay” in our attitude, will be able to realise his magnanimity.