उत्तम तप
इच्छा निरोध/ अपेक्षा निरोध/ पर वस्तुओं को छोड़ने को तप कहते हैं।
जैसे-जैसे तप पढ़ेगा इच्छाएँ कम होंगी।
इच्छा शक्ति अनंत है, पुण्य काफ़ी हो सकते हैं पर भोग शक्ति बहुत कम होती है।
एक भिक्षु राजा के पास भिक्षा लेने गया। पूरा खजाना उसके कठोरे में डाल दिया गया पर कटोरा भरा नहीं। पूछने पर पता लगा वह कटोरा मनुष्य की खोपड़ी से बना था।
इच्छाओं की जब पूर्ति होती है तो राग बढ़ता है, पूर्ति न होने पर द्वेष, धर्म हमको इच्छा रहित दिशा में ले जाता है।
तप प्रशंसा पाने के लिए नहीं करना चाहिए उससे पतन होता है। किसी की नज़र में आना ही चाहते हो तो भगवान की नज़र में आओ जिसकी नज़र में अनंत लोग हैं यानी सब की नज़र में आ जाओगे।
तप दो प्रकार के होते हैं बाह्य और अंतरंग।
बाह्य…अनशन(अशन की इच्छा ना होना, जब आप आत्मा के समीप रहेंगे तो भूख ही नहीं लगेगी),ऊनोदर, वृत्ति परिसंख्यान, रसपरित्याग,विविक्तशय्यासन, कायक्लेश। अंतरंग…प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग, ध्यान।
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
4 Responses
आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने उत्तम तप को परिभाषित किया गया होगा वह पूर्ण सत्य है। तप 12 प़कार के होते हैं, इसमें 6 बाह्य तप एवं अंतरंग भी 6 होते हैं। बाह्य तप किये जा सकते हैं, लेकिन अंतरंग कठिन होते हैं। अतः अंतरंग तप में इच्छाओं का एवं कषायों का निरोध करना परम आवश्यक है।
‘अशन’ ka kya meaning hai, please ?
भोजन।
Okay.