उत्तम तप

  • कल के संयम धर्म में इच्छाओं को कम करने का प्रयास था,
    आज के धर्म में इच्छाओं का पूर्ण निरोध करना है ।
    संयम में मन को मोड़ना था, तप में मरोड़ना/निचोड़ना है ।
    संयम 144 धारा है, तप कर्फ़्यु है ।
  • तप कठिन नहीं है, यदि मन स्वीकार कर ले तो ।
  • परिग्रह की निवृत्ति तप है, परिग्रह की प्रवृत्ति संसार ।
  • समुद्र में एक कचड़ा भी लहरों के द्वारा बहुत दूर तक चला जाता है ।
    लहर रूपी इच्छाओं को रोक दो, ताकि कचड़ा अपने अंदर ना जा सके ।
  • सामर्थ्य हम सब में है, जैसे हर लकड़ी में आग होती है, रगड़ने से निकलती है ।
    संसार में जितनी सामर्थ्य लगाते हैं, उतनी ही धर्म में क्यों नहीं लगा सकते ?
  • सिनेमा में एक सीन दिखाने के लिये सैकड़ों निगेटिव बनते हैं, वे एक से दिखते हुये भी थोड़े-थोड़े अलग होते हैं ।
    मन के भाव भी थोड़े-थोड़े Change होते हुये प्रेम के सीन से कत्ल के सीन तक जा सकते हैं ।
    इसलिये हर समय सावधान रहें, छोटे- छोटे भावों को भी लगातार संभालते रहें  ।
  • नेता, समाजसुधारक और साधक सभी मेहनत करते हैं ।
    प्राय: नेता अपनी Publicity के लिये, समाजसुधारक मन के संतोष के लिये,
    पर साधक आत्मकल्याण और मोक्ष प्राप्ति के लिये मेहनत करते हैं ।
  • श्री भरत ने 48 मिनिट से भी कम में, श्री बाहुबली ने 1 साल में तथा श्री आदिनाथ भगवान ने 1 हजार साल तप करके केवलज्ञान प्राप्त किया था ।
    क्योंकि श्री भरत ने पिछले जन्मों में अपना घड़ा मोक्ष में कारणभूत कर्मों से ज्यादा भर लिया था, श्री बाहुबली ने कम और श्री आदिनाथ ने और कम,
    इसलिये इस जन्म में घड़े को पूरा भरने में उनको अलग-अलग समय लगा ।                           हम भी जल्दी-जल्दी जब तक सामर्थ है, अपना घड़ा अधिक से अधिक भर लें ।
  • तप 2 प्रकार के हैं – अंतरंग और बाह्य ।
    जैसे अनशन – कर्मों की आत्मा से अनबन को दूर करने के लिये ।
    ऊनोदर – Full Diet   32 ग्रास की होती है, इसे धीरे धीरे कम करना ।
    विविक्तशय्यासन – एकांत में सोना क्योंकि कर्मों से अकेले ही तो लड़ना होगा ।
    विनय – मोक्षमार्ग की चाबी गुरू के पास ही होती है और उसे विनय से ही प्राप्त किया जा सकता है ।
    ध्यान – आखरी तप. ग्यारह तप की घाटियों को प्राप्त करने के बाद परम अवस्था ।
  • मोक्ष की यात्रा गिद्ध से सिद्ध बनने की है ।
    धर्मात्मा से अंतरात्मा और फिर परमात्मा बनने की है ।

मुनि श्री सौरभसागर जी

संयम

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