त्याग धर्म

मोह को छोड़कर संसार, देह और भोगों से उदासीन परिणाम रखना त्याग धर्म है ।

बारसाणुवेक्खा-78

2) दान और त्याग में अंतर –
* दान प्रवृत्ति है , त्याग निवृत्ति  ।
* दान शुभ भाव है, त्याग शुद्ध भाव ।
* दान स्वर्ग का कारण है, त्याग मोक्ष का कारण ।
* दान साधन है, त्याग साधना  ।
* दान बहिरंग है, त्याग अंतरंग  ।
* दान असमझ पूर्वक हो सकता है किन्तु त्याग समझ पूर्वक ही होता है ।
* दान आंशिक दिया जाता है, त्याग पूर्ण का होता है ।
* दान श्रावक करता है, त्याग मुनियों के द्वारा  ।

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