उत्तम ब्रम्हचर्य धर्म

स्वदार-संतोष को कुशील नहीं कहा, व्रत कहा है, ब्रम्हचर्याणु व्रत।

शादी धार्मिक संस्कार है, वासना पूर्ति के लिये नहीं, वासना को सीमित करना है।

वेदना का प्रतिकार संभोग है, उसमें सुख नहीं।

ऊपर ऊपर के देवों में काम पहले शरीर, फिर स्पर्शन आदि कम होते होते आखिरी में तो सोलहवें स्वर्ग के ऊपर, देवियाँ ही नहीं होतीं।
इसका मतलब, असली सुख उन लोगों में बढ़ता जाता है जिनके मन में काम कम होता चला जाता है।

छ्ठे नरक तक स्त्री जाती है जबकि शेर पांचवें तक, ऐसा क्यों?
आचार्य श्री – वासना इसका मुख्य कारण है । जो स्त्रियां परपुरुष संपर्क और गर्भपात आदि कराती हैं (उस गर्भ में आने वाला बच्चा हो सकता है राजा बने या साधू ) उसे आने से रोकतीं हैं इसीलिये शायद छ्ठे नरक तक जाती हैं।

मुनि श्री कुन्थुसागर जी

Share this on...

6 Responses

  1. उपरोक्त उदाहरण जो मुनि श्री कुन्थुसागर महाराज ने दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।

  2. “ऊपर ऊपर के देवों में काम पहले शरीर” ka meaning clarify karenge, please?

    1. निचले देवों में काम काया से, ऊपर के देवों में वचनादि से घटता हुआ देवियाँ ही नहीं होती है। पर सुख ऊपर-ऊपर बढ़ता जाता है।
      यानि सुख काम में नहीं बल्कि मन में होता है।

  3. “सुख काम में नहीं बल्कि मन में होता है” ka kya meaning hai, please?

    1. प्रायः लोग काम में सुख मानते हैं। यदि ऐसा ही होता तो मुनिराज परम सुखी कैसे होते!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives

September 19, 2021

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930