उत्तम ब्रह्मचर्य

  • जब हम आत्मानुराग से भर गये हों, देहासक्ति से ऊपर उठ गये हों, वहीं ब्रह्मचर्य है।
  • परिणामों की अत्यंत निर्मलता का नाम ब्रह्मचर्य है।

मुनि श्री क्षमासागर जी

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  1. ब्रह्मचर्य का तात्पर्य मैथुन या काम सेवन का त्याग कहलाता है, अथवा ब़म्ह का आशय आत्मा से है, उसमें लीन रहना ब़ह्मचर्य कहते हैं। अतः मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि हम आत्मानुराग से भर गये हों,देहाशक्ति से उपर उठ गये हों वही ब़म्हचर्य है। अतः परिणामों की निर्मलता का नाम ब़ह्मचर्य होता है।

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