उत्तम शौच धर्म
शौच = पवित्रता / लोभ का उल्टा
शौचता आती है संतोष से ।
संतोष व असंतोष में फ़र्क सिर्फ “अ” का,
“अ” = अभावोमुखी-दृष्टि ।
असंतोष के कारण …
1) अभावोमुखी-दृष्टि – जो पाता है सो भाता नहीं,जो भाता है सो पाता नहीं,इसलिए साता आती नहीं – आचार्य श्री विद्या सागर जी ।
2) यथार्थ की अनदेखी – अपनी योग्यता/ गुणों को न पहचानना ।
3) जीवन जीने का अस्वाभाविक तरीका – हैसियत से ज्यादा की इच्छा ।
4) लालसा की बहुलता – धन/ वैभव की हाय-हाय ।
सुख/ संतोष के लिए …
1) प्राप्त को पर्याप्त मानो
2) सकारात्मक-दृष्टि रक्खो
3) यथार्थ की सहज स्वीकृति
4) संयम पालन
मुनि श्री प्रमाण सागर जी
One Response
उपरोक्त कथन सत्य है कि शौच का मतलब पवित्रता और लोभ का उल्टा।शौचता आती है संन्तोष से। संतोष ओर असंन्तोष में सिर्फ अ का अंतर है।अ का मतलब अभावोमुखी द्वष्टि। अतः असंतोष के कारण चार बिंदु है।1 अभावोमुखी द्वष्टि का मतलब जो भाता है सो भाता नहीं इसके अलावा जो भाता है जो पता नहीं इसलिए साता आता नहीं।2 यथार्थ की अनदेखी इसमें अपने गुणों ओर योग्यता को नहीं पहिचान करता है।3 जीवन जीने की अस्भाविक तरीका इसका मतलब हैसियत से ज्यादा की इच्छा करना।4 लालसा की बहुलता इसमें धन वैभव की हाय हाय रहती है।सुख संतोष के लिए चार बिंदु है।1 प्राप्त को प्रर्याप्त मानना चाहिए।2 सकारात्मक द्वष्टिकोण होना चाहिए।3 यर्थात की सहज स्वीकृति होना चाहिए।4 जीवन में संयम रखना आवश्यक है।