उत्तम संयम

संयम क्या है ?… होश पूर्वक जीना/ जागृत रहना/ बाह्य पदार्थों से अप्रभावित रहना। इसके दो भेद… इंद्रिय निरोध, दूसरा प्राणी संयम।
लाभ… विल-पावर बढ़ती है। जीवन व्यवस्थित होता है, संसार में तथा परमार्थ में भी।
असंयम के तीन कारण… शारीरिक रोग(पहले हमने असंयम की भावना रखी होगी)। दूसरा इंद्रिय भोगों में लिप्तता।
तीसरा मन की दुर्बलता।
असंयम के नुकसान… समाज में बदनामी/ स्वास्थ्य खराब होना।
संयम की शुरुआत कैसे करें ?… बचपन में ही बच्चों को छोटे-छोटे नियम दिलायें जैसे टॉफी नहीं खाना आदि।
आचार्य श्री नेमिचंद्र जी ने संयम निभाने के लिए व्रत, समिति(कैसे चलना/ कैसे खाना आदि), गुप्ति, तीन दंडों से विरति(मन वचन काय) और इंद्रिय-विजय बताए हैं पर दुर्भाग्य है 60-70 साल की उम्र में भी हम दोबारा फेरे लेते हैं और शादी की वर्षगांठ मनाते हैं !

आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी

Share this on...

4 Responses

  1. आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने उत्तम संयम को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। भोजन, व्यवहार, आचरण में संयम तो रखा जा सकता है, लेकिन मन पर संयम रखना परम आवश्यक है। संयम में अपनी मनोवृत्ति बदलना परम आवश्यक है, अतः प़वृति की जगह मनोवृत्ति बदलने का प़यास करना परम आवश्यक है। अतः भोग विलासो पर नियंत्रण रखना परम आवश्यक है, ताकि जीवन में शांति रह सकती है। इन्द़ियो पर भी संयम रखना परम आवश्यक है।

    1. मन वचन और काय तीनों के द्वारा ही आत्मा दंडित होती है। इसलिए इनको तीन दंड कहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

September 13, 2024

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930