उत्तम सत्य
झूठ न बोलना तथा हित, मित, प्रिय बोलना ही सत्य है।
जैसे सुंदर/ अच्छे पक्षियों को पिंजरे में बंद कर दिया जाता है और वे उड़ना भूल जाते हैं ऐसे ही हम कर्म/ शरीर के पिंजरे में अनादि से हैं इसलिए आत्मा के सत्य बोलने के स्वभाव को भूल रहे हैं।
मुँह से निकलता वही है जो मन में होता है, वाणी अंतरंग को दिखाने का आईना है।
जैसे कुएँ में चार कुत्ते गिर जाएँ, पानी बदबूदार हो जाए तो वह तब तक ठीक नहीं होगा जब तक चारों को निकाल कर बाहर न किया जाए। यह चार हैं क्रोध, मान, माया और लोभ। जब यह चारों निकल जाते हैं तब सत्य की सुगंध आती है।
सत्य बोलने वाले को तकलीफ़ तो उठानी पड़ती हैं जैसे सुकरात, हरिश्चंद्र पर दृढ़ संकल्पी सत्य पर टिके रहते हैं।
हम लोग गुणों को तो पसंद करते हैं, गुणीजनों को नहीं।
जिसे सत्य के प्रति प्रेम/ सम्मान तथा उसके कठोर फल खाने की शक्ति हो, वही सत्यभाषी हो सकता है।
गोली से एक मरता है तथा स्वस्थ भी होता है, बोली से सैकड़ों।
जीभ में मिठास तथा जीवन में कड़वाहट तो धर्म अभी दूर है।
सत्य की सत्ता त्रैकालिक होती है।
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
4 Responses
आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने उत्तम सत्य को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में सत्य बोलना, सही जगह, सही समय व सही तरीके से होना चाहिए। सत्य बोलो पर ऐसा किसी का अपमान नहीं करना है। अतः जीवन में शान्ति और सम्मान बना कर रखना परम आवश्यक है। शब्दों पर ध्यान रखना परम आवश्यक है।
‘गोली से एक मरता है तथा स्वस्थ भी होता है’; iska meaning clarify karenge , please ?
प्रिय वचन बोलने से एक नहीं अनेक लोगों को लाभ होता है और अप्रिय वचन बोलने से एक नहीं अनेक घायल होते हैं।
Okay.