उद्वेग – हम कुछ हैं/बाह्य Achievement, आत्मा से दूर ले जाता है ।
संवेग – “मैं” घटाना है, आत्मा के पास ले जाता है ।
इन दोनों में हमें क्या पसंद है ?
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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संवेग का मतलब पंचपरमेष्टि के प्रति प़ीती और धार्मिक जनों से अनुराग रखना होता है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि उद्देग हमें आत्मा से दूर ले जाता है जबकि संवेग में “मैं” को घटाना है और आत्मा के पास ले जाता है। अतः दोनों में संवेग ही पसंद होना आवश्यक है।
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संवेग का मतलब पंचपरमेष्टि के प्रति प़ीती और धार्मिक जनों से अनुराग रखना होता है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि उद्देग हमें आत्मा से दूर ले जाता है जबकि संवेग में “मैं” को घटाना है और आत्मा के पास ले जाता है। अतः दोनों में संवेग ही पसंद होना आवश्यक है।