उद्वेलन प्रकृतियाँ
आहारक-द्विक, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यग्प्रकृति, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, वैक्रियक-द्विक, उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य गत्यानुपूर्वी ।
आहारक-द्विक की संयत से असंयत को प्राप्त होने पर उद्वेलना होती है।
( 3 गतियों के परमाणुओं की स्थिति पूर्ण होने पर भी उद्वेलना तिर्यंच गति में होती है। तिर्यंच गति की उद्वेलना नहीं होती है क्योंकि ज्यादातर समय जीव तिर्यंच गति में ही रहता है। ऐसे ही उच्च गोत्र की नीच गोत्र में ही उद्वेलना होती है। )
बाई जी