हर जीव का अपना-अपना केन्द्र, द्रव्य-रूप तथा पर्याय/गुण-रूप परिधि होती है ।
हर जीव अपने केंद्र पर एक पैर रखकर अपनी परिधि पर दूसरा पैर घुमा सकता है ।
लेकिन यदि दूसरे की परिधि पर पैर घुमायेगा तो गिरेगा ही ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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एकत्व भावना बारह भावनाओं में एक है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि हर जीव का अपना अपना केन्द्र रुप द़व्य तथा पर्याय और गुण रुप परिधि होती है। अतः जब जीव अपनी परिधि से दूसरे की परिधि में जाता है तो अवश्य गिरना ही पड़ेगा। अतः हर जीव को अपनी परिधि में केन्द्रित रहना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।
This is a beautiful explanation of “Ekatva bhaav” . It also explains why, while drawing inspiration from “Dev”, “Shastra” and “Guru”, we should chalk our own paths to attain “Moksha”.
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एकत्व भावना बारह भावनाओं में एक है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि हर जीव का अपना अपना केन्द्र रुप द़व्य तथा पर्याय और गुण रुप परिधि होती है। अतः जब जीव अपनी परिधि से दूसरे की परिधि में जाता है तो अवश्य गिरना ही पड़ेगा। अतः हर जीव को अपनी परिधि में केन्द्रित रहना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।
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