एकत्व

हर जीव  का अपना-अपना केन्द्र,  द्रव्य-रूप  तथा पर्याय/गुण-रूप परिधि होती है ।
हर जीव अपने केंद्र पर एक पैर रखकर अपनी परिधि पर दूसरा पैर घुमा सकता है ।
लेकिन यदि दूसरे की परिधि पर पैर घुमायेगा तो गिरेगा ही ।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

Share this on...

2 Responses

  1. एकत्व भावना बारह भावनाओं में एक है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि हर जीव का अपना अपना केन्द्र रुप द़व्य तथा पर्याय और गुण रुप परिधि होती है। अतः जब जीव अपनी परिधि से दूसरे की परिधि में जाता है तो अवश्य गिरना ही पड़ेगा। अतः हर जीव को अपनी परिधि में केन्द्रित रहना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है।

  2. This is a beautiful explanation of “Ekatva bhaav” . It also explains why, while drawing inspiration from “Dev”, “Shastra” and “Guru”, we should chalk our own paths to attain “Moksha”.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

November 16, 2019

December 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
3031