करुणा आत्मा का स्वभाव है, इसका कर्मों से कोई सम्बंध नहीं;
जबकि मोह, कर्म जनित होते हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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करुणा यानी दीन दुखी जीवों पर दया पूर्वक यथा योग्य करुणा करना होता है, इसमें संवेदनशील होता है।
मोह का तात्पर्य जिस कर्म के उदय से हित अहित के विवेक रहित होता है।मोह ऐसा कर्म है जिससे मोक्ष मार्ग पर चलने में असर्मथता होगी।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि करुणा आत्मा का स्वभाव है,इसका कर्मों से लेना देना नहीं है, जबकि मोह कर्म जनित होते हैं।
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करुणा यानी दीन दुखी जीवों पर दया पूर्वक यथा योग्य करुणा करना होता है, इसमें संवेदनशील होता है।
मोह का तात्पर्य जिस कर्म के उदय से हित अहित के विवेक रहित होता है।मोह ऐसा कर्म है जिससे मोक्ष मार्ग पर चलने में असर्मथता होगी।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि करुणा आत्मा का स्वभाव है,इसका कर्मों से लेना देना नहीं है, जबकि मोह कर्म जनित होते हैं।