कर्म-बंध/उदय
- जितना तीव्र कषाय के साथ कर्मबंध होगा उतनी देर से उदय में आयेगा, इसीलिए पापी लोग जो पाप तीव्रता के साथ करते हैं उनका उदय देर से दिखाई देता है।
- पुण्यात्मा अपनी धार्मिक/ शुभ क्रियायें तीव्र भावों के साथ करता है इसलिए वे फल देर में देते हैं।
पुण्यात्मा से कुछ पाप क्रियायें भी हो जाती हैं पर चूँकि वे मंद कषाय से होती हैं, इसलिए वो जल्दी उदय में आ जाती हैं - पाप चाहे पूर्व के हों या वर्तमान के, धर्म की उपस्थिति में फल हल्का कर देते हैं जैसे फोड़े पर पट्टी बांधो तो दिखाई तो नहीं देगा, ग्लानि नहीं आयेगी पर अंदर ही अंदर नासूर हो जायेगा, खुला छोड़ोगे तो लोगों को ग्लानि आयेगी पर जल्दी ठीक होगा।
- सम्यग्दृष्टि सातिशय पुण्य बांधता है लेकिन मिथ्यादृष्टि निरतिशय पुण्य बांधता है।
- जितना पुण्य/ पाप को बताओगे उतना ही वे कम होंगे।
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (29 अगस्त’24)
5 Responses
आर्यिका श्री पूर्णमती माता जी ने कर्म बंध एवं उदय को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए पापों को छोडने का प़यास करना परम आवश्यक है ताकि पुण्य अर्जित हो सकता है।
Beautiful theory to explain why good people are often seen to face many obstacles in life! Vandami pujya mataji !
फोड़े ko khula chodna ka comparison ‘धर्म’ se kiya hai kya? Ise clarify karenge, please ?
धर्मात्माओं से पाप तो होते हैं पर वह उनको छुपाते नहीं जैसे घाव पर पट्टी बांध के अंदर ही अंदर घाव को बढ़ाना नहीं।
Okay.